Rajesh Sharma
व्यक्ति वह सामाजिक प्राणी है जिसे ईश्वर ने सोचने, समझने और अपने विचारों को तार्किक आधार पर अभिव्यक्त करने की विशेष योग्यता प्रदान की है ।यदि हमारे तर्कों में आधार , दूसरे के विचारों के प्रति सम्मान , सुनने का धैर्य और वैचारिक स्वीकृति का साहस हो तो फिर आपसी वाद-विवाद से अनेक समस्याओं का बेहतर समाधान तलाश किया जा सकता है ।विद्यार्थियों में इसी तार्किक योग्यता का विस्तार करने के उद्देश्य से इस पुस्तक की परिकल्पना ने विस्तार लिया ।निःसंदेह ये आरंभ है , अंत नहीं ।इन विचारों में सुझाव और विस्तार की असीम संभावनाएं मौजूद हैं । अतः तर्क सहित वैचारिक आलोचना विषय को विस्तार ही प्रदान करेगी और यही इस लेखन का उद्देश्य है ।धन्यवाद सहित ।